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मदिरा सवैया




मदिरा सवैया


प्यार किया पर बात नहीं बतला मन मीत कहूँ किससे।

 बेघर प्यार किया अब तो निकला यह पागल है घर से।

खूब बना यह राह बिसार फँसा भ्रम जाल गिरा अब से।


प्यार उधार कहाँ मिलता गिरता यह केवल है नभ से।


प्यार करो पर आस नहीं बस बाँट इसे चलते रहना।

प्यार करो मन से मितवा मत माँग सदा डरते चलना।

दान महा यह है जग में  मत याचक सा बनते दिखना।

खोल खड़ा रह संगम सेतु सदा दिल में घुलते बहना।


प्रीति बनो जग मीत बनो सुखधाम रचो शिव ग्राम गढ़ो।

सैर करो अपने पग से शुभ  कर्म करो शिव श्याम पढ़ो।

प्रीति शरीर स्वयं बन जा अशरीर बने  खुद अग्र बढ़ो।

साँच सुपंथ सुनीति रचो खुद ही चल ताप जलाय  कढ़ो।

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4 Comments

Renu

23-Jan-2023 03:42 PM

👍👍🌺

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अदिति झा

21-Jan-2023 10:31 PM

Nice 👍🏼

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Punam verma

21-Jan-2023 08:48 AM

Very nice

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